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History [ इतिहास ]
Class 10th Chapter 1
यूरोप में राष्ट्रवाद
Full Chapter Explanation & Notes
★ इतिहास किसे कहते हैं ?
उत्तर :- इतिहास का अर्थ यह होता है कि बीते हुए समय और अब तक का जो घटनाओं का अध्ययन किया जाता है उसे हम इतिहास कहते हैं।
➪ दूसरे शब्द में यह कह सकते हैं कि जो घटनाएँ अतीत काल में निश्चित रूप से घटी थी। उसे इतिहास कहते है।
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★ इतिहास शब्द की उत्पति कैसे हुई ?
इतिहास शब्द संस्कृत भाषा के तीन शब्दों से मिलकर बना है। इति = ऐसा ही ह = निश्चित रूप से आस = था तीनों के मिलने से इतिहास शब्द की उत्पति हुई।
➪ इतिहास शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ”हिस्टोरिया” (Historia) से हुई है। जिसका अर्थ “पूछताछ या शोधहोता” है। ‘History’ शब्द का सबसे पहले प्रयोग ग्रीक लेखक “हेरोडोटस” ने किया था। इसीलिए उसे इतिहास का पिता कहा जाता है।
★ इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है।
(i) प्राचीन काल
(ii) मध्यकाल
(iii) आधुनिक काल
★ इतिहास क्यों पढ़े ?
उत्तर :- इतिहास पढ़ना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि इतिहास से ही हमें अतीत के बारे में जानकारी मिलती है। तब जाकर वर्तमान में उससे अच्छा कार्य कर सकें और अच्छा से रह सके। इसीलिए इतिहास पढ़ना बहुत ही जरूरी है।
यूरोप में राष्ट्रवाद [ NCERT BOOK के अधार पर ]
★ राष्ट्रवाद क्या है ?
राष्ट्रवाद का अर्थ यह है कि अपने देश के प्रति प्रेम, वाफादारी को हम राष्ट्रवाद कहते हैं। या किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनाती है।
☞ राष्ट्रवाद की भावना यूरोप में पहले से ही था। परंतु 1789 ई. के फ्रांसीसी क्रांति से यह विशाल रूप ले लिया। 19वीं शताब्दी
☞ यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना फ्रांस के राज्य क्रांति और नेपोलियन के आक्रमण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
★ नेपोलियन युग
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 15 अगस्त 1769 में फ्रांस में हुआ था। नेपोलियन ने जर्मनी और इटली राज्यों के भौगोलिक नाम से बाहर कर दिया तथा उसे वास्तविक एवं राजनीतिक रूपरेखा प्रदान की। जिससे इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। दूसरी तरफ नेपोलियन के नीतियों के कारण फ्रांस में यूरोप के विरुद्ध देशभक्ति पूर्ण विक्षोभ भी जगा। नेपोलियन के मृत्यु के बाद यूरोप की बिजाई शक्तियां ऑस्ट्रेलिया की राजधानी वियना में 1815 में एकत्र हुई।
★ मेटरनिख युग
सन 1815 ईस्वी के बियना सम्मेलन की मेजबानी ऑस्ट्रेलिया के चांसलर ने किया। जो एक प्रकार के घोर प्रतिक्रियावादी थे। इस सम्मेलन में ब्रिटेन, रूस, प्रशा और ऑस्ट्रेलिया जैसे यूरोपीय शक्ति ने मिलकर ऐसी व्यवस्था की जिसका मुख्य उद्देश्य यूरोप में शांति संतुलन की स्थापित करना था। जिसे नेपोलियन ने युद्धों में समाप्त कर दिया। गनतंत्र एवं प्रजातंत्र, जो फ्रांस की क्रांति की देन थी। उसका विरोध करना और पूर्णस्थापना करना। अंतः वियना सम्मेलन के माध्यम से यूरोप में नेपोलियन युग का अंत और मेटरनिख युग की शुरुआत हुई
★ मेटरनिख अपना प्रभाव इटली पर रखने के लिए कई भागों में विभक्त कर दिया।
☞सिसली और निपल्स के प्रदेश बूर्बोवंश के सम्राट फर्डिनेंड को दे दिया गया।
☞ रोम और उसके आस-पास के राज्यों को पोप को सौंप दिया गया।
☞ लोमबार्डी एवं वेनेशिया पर ऑस्ट्रेलिया का अधिकार कायम हुआ।
☞परमा, मोडेना और टस्कनी के प्रांत हैब्सवर्ग राजवंश को दे दिया गया। जेनेवा और सार्डिनिया पिडमाउंट के राज्य में सम्मिलित कर दिए गए।
☞ जर्मनी में 39 रियासतें का संघ कायम रहा जिस पर अप्रत्यक्ष रूप से आस्ट्रेलिया का अधिकार किया गया था वहां राष्ट्रीयता की भावना को नहीं जगाना चाहते थे।
☞ मेटरनिख ने फ्रांस में भी पुरातन व्यवस्था की पुनर्स्थापना की इस तरह वियना सम्मेलन प्रतिक्रियावादी शक्तियों की विजय थी। लेकिन यह व्यवस्था स्थाई साबित नहीं हुई है और जल्द ही रूप में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार हुआ।
★ 1814 ई. से लेकर 1848 ई. तक फ्रांस में परिवर्तन किए गए ?
☞बूर्वो राजवंश को वियना व्यवस्था के तहत फ्रांस में फिर से स्थापित किया गया तथा लुई 18 वाॅं फ्रांस का राजा बना। लुई 18 वाॅं प्रतिक्रियावादी तथा सुधारवादी शक्तियों के माध्यम से समाजस्य स्थापित करने का प्रयास किया।
★ जुलाई 1830 की क्रांति
चार्ल्स X एक निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था। जो फ्रांस में राष्ट्रीयता तथा जनतंत्रवादी भावनाओं को दबाने का कार्य कर रहा था। उन्होंने अपने शासनकाल में कई लोकतंत्र गतिरोध उत्पन्न किए। उसके द्वारा पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया गया। पोलिग्नेक को लुई 18 वाॅं द्वारा नागरिक संहिता और विशेषाधिकार से विभूषित किया गया था। उसके इस कदम को लोगों ने उदारवादी चुनौती तथा क्रांति के विरोध षड्यंत्र समझा। बाद में पोलिग्नेक के विरुद्ध गहरा असंतोष प्रकट हुआ। चार्ल्स X ने चार लोगों को गला घोटने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों के विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई है और फ्रांस में 28 जून 1830 ई. से गृहयुद्ध आरंभ हो गया। इसे ही जूलाई 1830 की क्रांति कहते हैं। परिणामस्वरूप चार्ल्स X को फ्रांस की राजगद्दी त्याग कर इंग्लैंड चले गए तब फ्रांस में बूर्वो वंश के शासन का अंत हो गया। बूर्वों वंश के बाद आर्लेयेस को गद्दी सौंप दी गई
★ 1830 की क्रांति का प्रभाव
देश में कट्टर राजसत्तावादियों का प्रभाव धीरे धीरे कम हो रहा था यह क्रांति मध्य वर्ग और लोकसंप्रभुता के सिद्धांत की ही देन थी। इस क्रांति में फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धांतों को पूर्णजीवित किया गया। इसका प्रभाव पूरे यूरोप पर परा और राष्ट्रीयता तथा देश भक्ति के भावना फैलने लगी। इटली तथा जर्मनी का एकीकरण तथा यूनान, पोलैंड, हंगरी में राष्ट्रीयता के प्रभाव के आंदोलन उठ खड़े हुए। यह क्रांति आगे चलकर लुई फिलिप के खिलाफ भी आवाज उठने लगी।
★ सन् 1848 ई. की क्रांति
लुई फिलिप एक उदारवादी शासक था। लुई फिलिप अपने विरोधियों को खुश करने के लिए ‘स्वर्णिम मध्यवर्गीय नीति’ में गीजो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। जो कट्टर प्रतिक्रियावादी था वह किसी भी तरह के वैधानिक, सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों का विरोध था। लुई फिलिप पूंजीपति वर्ग को पसंद करते थे। लुई फिलिप के शासनकाल में भुखमरी और बेरोजगारी व्याप्त होने लगी। इसी कारण गीजी की आलोचना होने लगी। बाद में लुई फिलिप को अपना गद्दी छोड़ना पड़ा। 24 फरवरी को लुई फिलिप ने अपना गद्दी त्याग कर इंग्लैंड चले गए। उसके बाद नेशनल एसेंबली में गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्षों से ऊपर पुरुषों को मताधिकार प्रदान किया गया और काम के अधिकार की गारंटी दी। गणतंत्रवादियों का नेता लामार्टिन एवं सुधारवादियों का नेता लुई ब्लॉ था। दोनों के बीच शीघ्र मतभेद हो गया और लुई नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बना
इस क्रांति में फ्रांस का अंत ही नहीं बल्कि इटली, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, हालैंड, स्वीटजरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैंड, आयरलैंड तथा इंग्लैंड भी इस क्रांति से प्रभावित हुए
★ इटली का एकीकरण
इटली 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति था। जहां कई स्वतंत्र राज्य हुए करते थे। जिसके कारण वहां अलगाव की भावना थी। इटली को राष्ट्र के रूप में स्थापना करने में अनेक प्रकार के समस्याओं के अलावे अन्य समस्याएं भी थी। जैसे इटली ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे विदेशी राष्ट्रों का हस्तक्षेप था। इधर रोम के राजधानी पर पोप के प्रभाव थी। इसके बावजूद आर्थिक और प्रशासनिक विसंगतियां मौजूद थी।
इसके बावजूद 19 वीं सदी के आरंभ में इटली में राष्ट्रीयता का विकास हो रहा था। इटली में फ्रांस में होने वाली प्रभाव भी स्पष्ट रूप से पर रहा था इटली विजय के बाद भी नेपोलियन इसे तीन गणराज्यों में गठित किया। सिसपाइन गणराज्य, लिगुलियन तथा ट्रांसपेडेन।
इटली में 1820 ईसवी में संविधानिक सुधारक के लिए नागरिक ने आंदोलन करना शुरू कर दिया। एक गुप्त दल कार्बोरनारी का गठन राष्ट्रवादी द्वारा किया गया जिसका उद्देश्य राज्यतंत्र को नष्ट कर गणराज्य की स्थापन करना था। प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता जोसेफ मेजिनी का संबंध भी इसी दल से था।
★ मेजिनी
मेजिनी साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था। मेजिनी के पास राजनीति का ज्ञान नहीं रखता था। अतः आदर्शवादी गुण अधिक और व्यावहारिक गुण कम थे। मेजिनी पराजय के बाद भी हार नहीं माने। सन 1831 ईस्वी में उसने “यंग इटली” नामक संस्था की स्थापना की
★ एकीकरण का द्वितीय चरण
इटली में 1848 तक किए गए कार्य असफल रहे लेकिन धीरे-धीरे इटली में आंदोलनों के कारण राष्ट्रवादी की भावना तीव्र हो रही थी। इटली में सार्डिनिया-पिडमाउंट का नया “विक्टर इमैनुएल” राष्ट्रवादी विचारधारा के थे उन्होंने काउंट कावूर को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
★ काउंट कावूर
काउंट कावूर एक सफल कूटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी थे। वह इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रेलिया को मानते थे। उन्होंने आस्ट्रेलिया को पराजित करने के लिए फ्रांस के साथ दोस्ती के हाथ बढ़ाई। 1953-54 के क्रीमिया युद्ध में कावुर ने फ्रांस की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी जबकि इसके लिए फ्रांस ने किसी प्रकार का आग्रह भी नहीं किया था। इस युद्ध में कावूर को लाभ प्राप्त हुआ। फ्रांसीसी मदद के बिना इटली का एकीकरण काबर की दृष्टि में संभव नहीं था। इसी दौरान 1859-60 में ऑस्ट्रेलिया और पिंडमाउंट में सीमा विवाद युद्ध आरंभ हो गया। फ्रांस ने इटली के समर्थन में सेना उतार दिया। जिसका रिजल्ट ऑस्ट्रेलिया बुरी तरह से पराजित हो गया। इसी संधि के अनुसार लोमबार्ड्री पर पिडमाउंट का अधिकार और वेनेशिया पर ऑस्ट्रेलिया का अधिकार माना गया।
★ गैरीबाल्डी
गैरीबाल्डी पेशे से नाविक था। उसका जन्म 4 जुलाई 1807 ई. को नीस नगर में हुआ था। गैरीबाल्डी ने अपने कर्मचारियों तथा स्वयं सेवकों की सशस्त्र सेना बनाएं और अपने सैनिकों को लेकर इटली के प्रांत पर सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण कर दिया। यहां के रियासतें बूर्वो राजवंस के निरंकुश शासक से तंग होकर गैरीबाल्डी के समर्थक बन गए। उसने वहां पर गणतंत्र की स्थापना की। गैरीबाल्डी अपना सारा संपत्ति राष्ट्र को समर्पित कर साधारण जीवन जीने लगा। त्याग और बलिदान के इस भावना के कारण गैरीबाल्डी के चरित्र को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान को प्रचारित किया गया तथा लाला लाजपत राय ने उसकी जीवनी लिखी।
1862 सभी में दुर्भाग्यवश कावूर की मृत्यु हो गई और वह पूरे इटली का एकीकरण नही देख पाया। 1870-71 में फ्रांस और प्रसा के बीच युद्ध छिड़ गया।
★ जर्मनी का एकीकरण
इटली के एकीकरण के साथ-साथ जर्मनी क्षेत्र में भी सामान प्रक्रिया चल रही थी दोनों देश का एकीकरण लगभग साथ साथ ही संपन्न हुआ।
जर्मनी मध्यकाल में संगठित होकर लंबे समय तक अवस्थित रहा लेकिन आधुनिक युग के आते-आते जर्मनी पूरी तरह से विखंडित हो गया। जिसमें लगभग 300 छोटे-बड़े राज्य थे। उसमें राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक विषमताएं भी मौजूद थी। जर्मनी में सबसे शक्तिशाली प्रसा राज्य था।
इसी दौरान जर्मनी में बुद्धिजीवियों, किसानों तथा कलाकारों जैसे -हिगेल काउंट, हम्बोल्ट, अन्डर्ट, जैकब ग्रीम आदि ने जर्मन राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
★ बिस्मार्क
विलियम ने एकीकरण को ध्यान में रखकर महान कूटनीतिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया। बिस्मार्क जर्मन संसद में कूटनीतिज्ञ का लगातार परिचय देते आ रहा था। बिस्मार्क जर्मन एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति को महत्व समझता था अतः उसने “रक्त और लौह की नीति” का अवलंबन किया। कालांतर में उसने 1830 के आस्ट्रेलिया प्रशासन दी का विरोध करना शुरू किया जिसमें ब्रासा के नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण नहीं किया जाना था। बिस्मार्क ने ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर 1864 ईसवी में शेलसविग और होल्सटिन राज्यों के मुद्दे को लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। ऑस्ट्रेलिया ने 1866 ईसवी में प्रशा के खिलाफ सोडावा में युद्ध की घोषणा कर दी। और ऑस्ट्रेलिया दोनों तरफ से फस कर युद्ध में पराजित हो गया। इस प्रकार ऑस्ट्रेलिया का अधिकार जर्मन पर से हटा।
★ यूनान में राष्ट्रीयता का उदय
फ्रांसीसी क्रांति से यूनानीयों में राष्ट्रीयता की भावना की लहर जागी। जो धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर एक पहचान थी। यूनान तुर्की से अलग होने के लिए एक आंदोलन चलाए जिसका नाम हितेरिया फिलाइक नामक संस्था जो ओडीशा नामक स्थान पर थी।
★ हंगरी
राष्ट्रवादी की भावना हंगरी में भी देखने को मिलती है। हंगरी पर आस्ट्रेलिया का पूर्ण प्रभुत्व था। 1848 के प्रभाव से हंगरी में भी आंदोलन शुरू हुई। यह आंदोलन का नेतृत्व कोसूथ तथा फ्रांसीसी डी का नाम क्रांतिकारी के द्वारा किया जा रहा था। कोसूथ लोकतांत्रिक विचारों का समर्थक था उसने वर्गहिन समाज के विचारों को जनता तक पहुंचाना चाहता था। जिस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फ्रांस में लुई फिलिप के पतन के बाद हंगरी के राष्ट्रीय आंदोलन पर विशेष प्रभाव पड़ा। 31 मार्च 1830 ईसवी को ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने हंगरी की कई बातें मान ली।
★ पोलैंड
पोलैंड में भी राष्ट्रवादी भावना के कारण रूसी शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गए। 1830 ई० की क्रांति का प्रभाव यहाँ के उदारवादियों पर भी व्यापक रूप से पड़ा था परन्तु इन्हें इंग्लैंड तथा फ्रांस की सहायता नहीं मिल सकी। अतः इस समय रूस ने पोलैंड के विद्रोह को कुचल दिया।
★ बोहेमिया
बोहेमिया जो ऑस्ट्रियाई शासन के अंतर्गत था। बोहेमिया की बहुसंख्यक चेक जाति की स्वायत्त शासन की मांग को स्वीकार किया गया परन्तु आन्दोलन ने हिंसात्मक रूप धारण कर लिया। जिसके कारण ऑस्ट्रिया द्वारा क्रांतिकारियों का सख्ती से दमन कर दिया गया। इस प्रकार बोहेमिया में होने वाले क्रांतिकारी आन्दोलन की उपलब्धियाँ स्थायी न रह सकीं।
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