Civics 10th Class Chapter 2 Notes In Hindi || सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली नोट्स

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Civics (नागरिक शास्त्र)

Class 10th        Chapter 2

सत्ता में साझेदारी की कार्यप्रणाली

Chapter Notes

 

★ संघीय व्यवस्था का गठन

संघीय व्यवस्था आमतौर पर दो तरीकों से गठित होती है कई बार स्वतंत्र और संप्रभु राज्य आपस में मिल कर सामान्य संप्रभुता स्वीकार कर एक संघीय राज्य का गठन करते हैं आमतौर पर इस तरह से गठित संघीय व्यवस्था में राज्यों की स्वायत्ता या पहचान की भावना प्रबल होती है अतः संघ में शामिल होने वाले राज्यों के अधिकारी समान  होते हैं वह केंद्र सरकार की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होते है क्योंकि इस तरह से गठित संघीय व्यवस्था मैं आमतौर पर  अवशिष्ट अधिकार राज्य के हिस्से में आते हैं संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रेलिया इस तरह से गठित संघीय  राज्य के उदाहरण है।

इसके विपरीत जब किसी बड़े देश को अनेक राजनैतिक इकाइयों में बांट कर वहां स्थानीय या प्रांतीय सरकार और केंद्र में अन्य सरकार की व्यवस्था की जाती है तब भी संघीय  सरकार की स्थापना होती है राज्य और राष्ट्रीय सरकारों के बीच सत्ता का बंटवारा किया जाता है भारत, बेल्जियम और स्पेन में संघीय शासन व्यवस्था की स्थापना इसी तरह से की गई है इस तरह से गठित संघीय व्यवस्था में राज्यों की अपेक्षा सरकार ज्यादा शक्तिशाली होती हैं।

 

★ भारत में संघवाद का विकास

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व करने वाले कांग्रेस पार्टी शुरू से ही संघीय व्यवस्था का समर्थक रहे। उसका अपना संगठनात्मक ढांचा भी इसी आधार पर बना 1946 में गठित संविधान सभा का आधार भी संघवाद था क्योंकि इसमें प्रांतों के प्रतिनिधि वहां की विधानसभा द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली के द्वारा चुने गए थे और देशी रियासतों के अधिकतर प्रतिनिधि को उनके शासकों ने नामजद किया था।

इसी तरह से विविधता को मान्यता देने के साथ राष्ट्रीय एकता के मूल्यों के संवर्धन के लिए संघीय शासन व्यवस्था की गई।

 

★ भारत में संघीय शासन व्यवस्था

संघीय व्यवस्था की सबसे पहली शर्त के रूप में भारतीय संविधान में दो तरह की सरकारों की व्यवस्था की गई है एक संपूर्ण राष्ट्रीय के लिए जिसे संघीय सरकार या केंद्रीय सरकार करते हैं। और दूसरे प्रत्येक प्रांतीय इकाई या राज्य के लिए सरकार जिससे हम प्रांतीय  या राज्य सरकार कहते हैं।

➪ संविधान में स्पष्ट रूप से केंद्र और राज्य सरकार के कार्य क्षेत्र और अधिकार को बांटा गया है विधायी अधिकारों को तीन सूचियों में उल्लिखित किया गया है

➪ संघ सूची में पूरे देश के लिए महत्व रखने वाले विषयों यथा प्रतिरक्षा विदेशनीति संचार साधन मुद्रा बैंकिंग आदि विषय रखें गए हैं इन पर कानून बनाने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है।

➪ स्थानीय महत्व के विषयों यथा जेल स्वास्थ्य शिक्षा पुलिस आदि को राज्य सूची में रखा गया है इनपर सिर्फ राज्य सरकार कानून बना सकती है

 

★ संघीय व्यवस्था का किर्यान्वयन

संघीय सिद्धांतों का कार्यान्वयन राजनैतिक संस्कृति विचारधारा इतिहास के वास्तविकता ओं से निर्देशित होता है अगर संघीय इकाईयों में आपसी विचार सहयोग सम्मान और संयम की संस्कृति रहती है तो संघीय व्यवस्था का कार्यान्वयन आसानी से होती है राजनैतिक दलों की उपस्थिति सत्ता में साझेदारी के अनेक प्रयत्न एवं व्यवहार से भी संघीय व्यवस्था की सफलता या असफलता निर्धारित होती है विश्व के बहुत सारे देशों को इस तरह अनुभवों से गुजर ना पड़ा है जहां क्षेत्रीय भाषायी विविधताओं को सम्मान देने के लिए संघीय व्यवस्था अपनाई गई लेकिन सत्ता में साझेदारी के प्रभावकारी साधन के रूप में यह संघीय व्यवस्था कितनी कारगर सिद्ध हुई इसका विश्लेषण करें

सोवियत समाजवादी गणराज्यों का संघविश्व की एक महान शक्ति के रूप में उभरा लेकिन 1989 के बाद अनेक स्वतंत्र राष्ट्रों में विघटना हो गया

 

★ भाषा नीति

भारत में बहुत सी भाषाएं बोली जाती है श्रीलंका में भाषागत भेदभाव राजनैतिक अस्थिरता का बहुत बड़ा कारण रहा है इसलिए भारतीय संविधान में हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया क्योंकि यह आबादी के 40% लोगों की भाषा है संविधान के अनुसार सरकारी कामकाज की भाषा में अंग्रेजी के प्रयोग के निबंध के बावजूद गैर हिंदी भाषी प्रदेशों की मांग के  कारण अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा है।

 

★ केंद्र राज्य संबंध

केंद्र और राज्यों के संबंध संघीय व्यवस्था के कार्यकरण की परीक्षा के लिए एक कसौटी का काम करते हैं काफी समय तक हमारे यहां एक पार्टी का केंद्र और राज्यों में वर्चस्व रहा इस दौरान केंद्र राज्य संबंध सामान्य रहें जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग दल की सरकार रही तो केंद्र सरकारों ने राज्य के अधिकार की अनदेखी की अतः राज्यों ने केन्द्रीय सरकार की शक्तियों का विरोध करना शुरू कर दिया तथा राज्यों को और स्वायत्तता एवं शक्तियां देने की मांग की । उन दिनों अक्सर केन्द्र सरकार संवैधानिक उपबन्धों का दुरूपयोग कर विपक्षी दलों की राज्य सरकार को भंग कर देती थी 1980 के दशक में केन्द्रीय सरकार ने जम्मू एवं आंध्र की निर्वाचित सरकार बर्खास्त कर दिया था।

 

★ भारत में विकेंद्रीकरण

इस तरह के विकेंद्रीकरण के पीछे या भावना काम करती है कि जो काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं। वे काम स्थानीय लोगों के हाथों में ही रहने चाहिए। उन्हों स्थानीय जीवन से जुड़े मसलों जरुरतों और विकास के बारे में फैसला लेने की प्रक्रिया से जोड़ा जा सके। स्थानीय जनता प्रादेशिक या केंद्रीय सरकार से कहीं ज्यादा स्थानीय समस्याओं से परिचित होती है क्योंकि इसका सीधा असर उसकी रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ता है

 

★ बिहार में पंचायती राज का स्वरूप

बिहार में पंचायती राज स्वरूप त्रिस्तरीय है

  1. ग्राम पंचायत :- इसका प्रधान मुखिया होता है
  2. पंचायत समिति :- ग्राम पंचायत और जिला परिषद के बीच की कड़ी है
  3. जिला परिषद :- जिला परिषद का एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होता है जिसके सभी पंचायत समितियों के प्रमुख इसके सदस्य होते है।

 

★ ग्राम पंचायत के सामान्य कार्य

  1. पंचायत के क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तथा वार्षिक बजट बनाना
  2. प्राकृतिक विपदा के समय सहायता कार्य करना
  3. सार्वजनिक सम्पत्ति से अतिक्रमण हटाना
  4. स्वैच्छिक श्रमिकों को संगठित करना और सामुदायिक कार्यों में स्वैच्छिक संयोग देना

 

★ ग्राम पंचायत के प्रमुख अंग

  1. ग्राम सभा :- ग्राम पंचायत के सभी व्यस्क स्त्री और पुरुष की उम्र 18 वर्ष से अधिक होना चाहिए इसका सदस्य होता है
  2. मुखिया‌ :- यह ग्राम सभा की बैठक बुलाता है और उसकी अध्यक्षता करता है
  3. ग्राम रक्षा दल :- यह गांव की पुलिस व्यवस्था है इसमें 18 से 30 वर्ष के युवक शामिल हो सकते है
  4. ग्राम कचहरी :- यह ग्राम पंचायत की अदालत है जिसमें न्यायिक कार्य किया जाता है

 

★ बिहार में नगरीय शासन व्यवस्था

भारतीय सदस्य ने 74वें  संविधान संशोधन 1992 नगरी शासन व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता प्राप्त किया है हमारे राज्य में नगरों के स्थानीय शासन के लिए निम्न तीन प्रकार की संस्थाएं

  1. नगर पंचायत :- जब कोई गांव शहर के रूप में बदलने लगता है तो वहां नगर पंचायत का गठन किया जाता है नगर पंचायत के गठन के लिए उस शहर की जनसंख्या 12000 से 40000 से होनी चाहिए तथा शहर के तीन चौथाई जनसंख्या कृषि छोड़कर अन्य कार्यों में संलग्न होना चाहिए तब उसे नगर पंचायत की मान्यता दी जाती है
  2. नगर परिषद :- वैसा शहर जिसकी जनसंख्या 200000 से 300000 के बीच है तथा तीन चौथाई जनसंख्या कृषि छोड़कर अन्य कार्यों से अपना आजीविका चलाते हैं। तो वहां पर नगर परिषद का गठन किया जाता है साथ ऐसे शहरों की जनसंख्या की घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होना चाहिए
  3. नगर निगम :- वैसा शहर जिसकी जनसंख्या तीन लाख से अधिक होती है वहां पर नगर निगम की स्थापना की जाती है नगर निगम एक बड़ा शहर होता है नगर निगम में वार्डों की संख्या कम से कम अधिकतम 75 हो सकती है
  • भारत में सर्वप्रथम 1688 ई• में मद्रास (चेन्नई) नगर निगम की स्थापना की गई थी
  • बिहार में सर्वप्रथम 1952 में पटना में नगर निगम की स्थापना की गई थी
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