Civics Class 10th Chapter 1 Subjective Question Answer || लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी लघु एवं दीर्घ उत्तरिया प्रश्र (Subjective)

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Civics (नागरिक शास्त्र)

Class 10th         Chapter 1

लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

लघु एवं दीर्घ उत्तरिया प्रश्र (Subjective)

 

 

1. हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती है | कैसे ?

उत्तर :- यह आवश्यक नहीं है कि सभी सामाजिक विभिनता समाज विभाजन आधार होता है विभिन्न समुदायों के लोगों के विचार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं लेकिन उनका हित समान होता है।

जैसे :- मुंबई में मराठियों के हिंसा का शिकार व्यक्तियां की जाति भिन्न-भिन्न थी। धर्म भिन्न- भिन्न थी। लेकिन उनका क्षेत्र एक ही था। वह सभी एक ही क्षेत्र के थे। उनका ही अपने-अपने व्यवसाय में लगे हुए थे। अतः सामाजिक हर विभिन्नता जैसे जाति धर्म लिंग सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाता है।

 

2. सामाजिक अंतर कब और कैसे सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है?

उत्तर :- जब एक धर्म या समुदाय के लोगों का सामाजिक अंतर दूसरे समुदाय धर्म के अंतर से अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है। और लोगों को ऐसा महसूस होने लगता है कि वह दूसरे समुदाय के हैं। उनका इस समुदाय में अस्तित्व नहीं है। तब सामाजिक अंतर सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है।

 

3. जाति और नस्ल में क्या अंतर है?

उत्तर :- जाति और नस्ल सामान्य नहीं है क्योंकि जाति का आधार सामाजिक होता है और नस्ल आधार जीवन शास्त्र है लेकिन नस्ले कभी भी विशुद्ध रूप से जीवन शास्त्री नहीं है। क्योंकि यह भी जाति की तरह ही सामाजिक और वेदानिक वर्गों कारण हो गया है।

 

4. भारत की विधायकों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है?

उत्तर :- भारत के विधायकों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति संतोषजनक नहीं है हालांकि कुछ वर्षों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की संख्या में वृद्धि हुई है लेकिन अभी भी विकसित देशों की अपेक्षा भारत में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत मात्रा में बहुत ही कम है। महिला सोसाइटी तथा महिला आरक्षण के द्वारा महिला प्रतिनिधित्व की संख्या बढ़ाया जा रहा है जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है।

 

5. वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

उत्तर :- वर्ण व्यवस्था जातिगत समुदाय का एक बहुत बड़ा वर्ग है। इनमें विभिन्न जाति के लोगों को एक क्रम में रखा गया है। इस व्यवस्था के अंतर्गत खास जाति के लोग समाज के ऊपरी प्रधान पर होते हैं। और अन्य जाति के लोग क्रमागत उनके नीचे होते हैं जैसे हिंदू में वर्ण व्यवस्था इस प्रकार है ब्राह्मण, क्षेत्रीय और शूद्र प्रारंभ में यह व्यवस्था सिर्फ श्रम विभाजन के आधार पर था। लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था कठिन और स्थाई हो गया है। अब शादी विवाह खान – पान सब कुछ एक वर्ण तक ही सीमित रह गया है।

 

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