गोधूली [ हिंदी ]
Class 10th Chapter 4
नाखून क्यों बढ़ते हैं : हजारी प्रसाद द्विवेदी
पाठ का प्रश्न उत्तर ( Subjective Question )
1. नाखून क्यों बढ़ते हैं ? यह पश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ ?
उत्तर :- नाखून क्यों बढ़ते हैं या प्रश्न लेखक के सामने उस समय उपस्थित हुआ जब लेखक की छोटी पुत्री ने लेखक से पूछा कि पिताजी नाखून क्यों बढ़ते हैं।
2. बढ़ते नाखूनों द्वारा प्राकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है ?
उत्तर :- प्राचीन काल में मनुष्य नख दन्तावलंबी था पशुत्व भाव को प्राप्त किये थे बढ़ते नाखून द्वारा प्राकृति मनुष्य को उनके पाश्व वृत्ति की याद दिलाती है।
3. लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप में देखना कहां तक संगत हैं?
उत्तर :- नाखून ही मानव के अस्त्र थे लाखो वर्ष पहले मनुष्य जब जंगली था उसे नाखून की जरूरत थी क्योंकि आत्मरक्षा एवं भोजन हेतु नख की महत्ता अधिक थी क्योंकि अस्त्र से हम अपनी सुरक्षा करते हैं इसलिए नाखून को अस्त्र के रूप में देखना काफी हद तक संगत हैं।
4. मनुष्य बार-बार नाखूनों को क्यों काटता हैं?
उत्तर :- नाखून मनुष्य का प्राचीनतम हथियार है जिस समय मनुष्य पशु की भांति जीवन व्यतीत कर रहा था क्योंकि वह अपने पाश्र्व वृत्ति यानी पुरानी चिन्हों को भुलना चाहता है।
5. सुकुमार बिनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरू किया ? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है?
उत्तर :- आज से लगभग दो वर्ष पूर्व विलासी प्रवृत्ति के मनुष्य ने नाखून को खूब सजाकर त्रिकोण चंद्राकार वर्तुलाकार आदि विविध आकार प्रकार देकर कॉंट छॉंट कर सुंदर बनाते थे।
6. स्वाधीनता शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता हैं ?
उत्तर :- लेखक ने स्वाधीनता शब्द का अर्थ बताते हुए कहते हैं अपने ही अधीन रहना क्योंकि यहां के लोग ने अपनी आजादी के जितने भी नामकरण किए उनमें है स्वतंत्रता स्वराज स्वाधीनता उसमें स्व का वंधन अवश्य है।
7. लेखक के अनुसार सफलता और चरितार्थता क्या है?
उत्तर :- मनुष्य की सफलता और चरितार्थता शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता प्रतिपादित करते हुए कहते है किसी भी सफल हो जाना सफलता है लेकिन प्रेम मैत्री त्याग एवं मंगल भाव रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना चरितार्थता है।
14. व्याख्या करें
(क) मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूॅं तो कभी कभी निराश हो जाता हूॅं ?
उत्तर :- मनुष्य की भयंकर पाशवी वृत्ति के जीवंत प्रतीक नाखून है लेकिन अगर नाखून काटना मानवीय प्रवृत्ति और नाखून बढ़ना पाश्विक प्रवृत्ति है तो मनुष्य पाश्विक प्रवृत्ति को अभी भी अंग लगाए हुए हैं लेखक कभी-कभी यह सोचकर निराश हो जाते हैं कि यह नाखून पाश्विक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाले हैं क्या हम पुनः नखावलंबी तो नहीं बन जाएंगे यही सोच कर लेखक निराश हो जाते हैं।
(ख) कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें मनुष्य उन्हों बढ़ने नहीं देगा ?
उत्तर :- निबंध की समाप्ति काल में लेखक इस निर्णय पर पहुंच जाता है। मनुष्य वर्तमान परिवेश में बौद्धिकता का महानतम स्वरूप हो सभ्यता और संस्कृति के सोपान पर हमेशा अग्रसर है इस आधार पर लेखक को विश्वास है। कि यदि नाखून बढ़ते हैं तो मनुष्य उन्हें निश्चित रूप से बढ़ने नहीं देंगा वह जितना बढ़ेगा मनुष्य उतना काटता रहेगा क्योंकि मनुष्य पुनः पाश्विक प्रवृत्ति को नहीं अपनाना चाहते हैं।
15. लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है ?स्पष्ट कीजिए |
उत्तर :- लेखक हमारी प्रसार द्विवेदी जी की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है। अपने आप पर अपने द्वारा लगाए हुए बंधन भारतीय चित्र जो आज अनधीनता को रुप में न सोच कर स्वाधीनता के रूप में सोचता है। यह भारतीय संस्कृति की विशेषता का ही फल है वह हमारे दीर्धकालीन संस्कारों में आयी है वह संस्कार स्व के बंधन को आसानी से छोड़ नहीं सकता है।
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